"तुम जिसे अपनी सफलता कहते हो और जिसका बखान करते थकते नहीं हो दरअसल वह तुम्हारा बेरंग और निष्ठुर होना है" (अपनी इसी कविता से) सार्थक हो तुम्हारा होना अनाथ तुम नहीं हो "आवेग...दृष्टि... दिशा इतिहास सभी तुम हो" (इसी कविता से) तुम केवल श्रद्धा नहीं हो अपनी अपनी यात्रा

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